उदयपुर के रक्षक दरवाजे और शहरकोट - Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi

उदयपुर के रक्षक दरवाजे और शहरकोट - Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi, इसमें उदयपुर के 12 दरवाजों और परकोटा यानी नगरकोट के बारे में जानकारी दी गई है।

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 13

{tocify} $title={Table of Contents}

उदयपुर शहर में प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ कई ऐतिहासिक विरासत भी बिखरी पड़ी है। यहाँ के महाराणाओं ने शहर की सुरक्षा के लिए इसके चारों तरफ एक परकोटा बनवाया था।

इस परकोटे के अंदर कुल 12 दरवाजे बनाए गए थे जिनमें से एक को छोड़कर बाकी सभी आज भी मौजूद हैं।

उदयपुर के स्मार्ट सिटी बन जाने के बाद इस परकोटे और दरवाजों का जीर्णोद्धार करवाकर इन्हें इनके पुराने स्वरूप में रखा गया है।

आज हम उदयपुर के परकोटे और दरवाजों को करीब से देखकर इनके इतिहास के बारे में जानते हैं। आइए शुरू करते हैं।

उदयपुर का परकोटा - City Wall of Udaipur


उदयपुर शहर को सुरक्षित रखने के लिए इसके चारों तरफ एक सुरक्षा दीवार यानी परकोटा बनवाया गया जिसे शहरकोट, नगरकोट या शहर पनाह कहा जाता था।

अलग-अलग महाराणाओं के समय में बनी यह सुरक्षा दीवार आज भी कई जगह पर सुरक्षित हालत में मौजूद है।

City Palace के आगे पिछोला झील के पास जल बुर्ज से शुरू होकर यह दीवार माछला मगरा के ऊपर से रामपोल, एकलिंग गढ़ होती हुई किशनपोल, उदियापोल, सूरजपोल, देहली गेट, हाथी पोल, चाँदपोल, अम्बापोल, ब्रह्मपोल और सत्तापोल को जोड़ते हुए वापस City Palace पर आकर समाप्त होती है।

1950 ईस्वी तक किशनपोल से उदयापोल, सूरजपोल, देहली गेट से हाथीपोल तक की दीवार के आगे एक गहरी खाई हुआ करती थी जिसे झीलों के रिसाव (झारण) से बहने वाले पानी से भरा जाता था।

बाद में उदयापोल और सूरजपोल के साथ बापू बाजार, अश्विनी बाजार जैसे बाजारों को विकसित करने के लिए इस खाई को पाट दिया गया।

उदयपुर के परकोटे का इतिहास - History of City Wall of Udaipur


उदयपुर को महाराणा उदय सिंह ने 1553 ईस्वी में अक्षय तृतीया के दिन बसाया था लेकिन इन्हें इसके विकास के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया।

उदयपुर की सुरक्षा के लिए 1620 से 1628 ईस्वी के बीच महाराणा कर्ण सिंह ने माछला मगरा पहाड़ से सुरक्षा दीवार को बनवाना शुरू किया।

इस दीवार की लंबाई 6 किलोमीटर थी जिसमें 7 दरवाजे थे। दीवार को मजबूती देने के लिए इसमें कई जगह पर गोलाकार बुर्ज भी बनवाई गई।

शहरकोट की चौड़ाई लगभग 10 फीट रखी जाती थी ताकि इस पर हाथी और तोप आदि को आसानी से ले जाया जा सके।

शहरकोट पर सीढ़ियों के साथ Ramp जैसी जगह भी बनाई जाती थी। साथ ही इसमें बंदूक और तीर चलाने के लिए छोटी-छोटी खिड़कियाँ भी बनाई जाती थी।

महाराणा कर्ण सिंह ने माछला मगरा पर एकलिंग गढ़ नाम के एक गढ़ के साथ करणी माता का मंदिर भी बनवाया था।

महाराणा कर्ण सिंह के शुरू करवाए गए परकोटे के निर्माण कार्य को महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710–34) ने काफी हद तक आगे बढ़ाया।

बाद में इस परकोटे का पूरा निर्माण महाराणा अरी सिंह द्वितीय (1762-1772) के समय उनके प्रधानमंत्री अमरचंद बड़वा ने करवाया।

मेवाड़ के प्रधानमंत्री अमरचंद बड़वा ने उदयपुर शहर की रक्षा के लिए कुछ तोपों को शहरकोट पर रखवाना शुरू किया गया।

रेलवे स्टेशन के सामने शहरकोट की बुर्ज पर जगत शोभा या लोड़ची तोप, हाथी पोल पर जय अम्बा तोप और सूरजपोल पर मस्त बाण तोप रखी गई।


अमरचंद बड़वा द्वारा शुरू की गई जगत शोभा तोप की पूजा आज भी नियमित रूप से की जाती है। अब इस तोप को तोपमाता के नाम से पूजा जाता है।

1769 ईस्वी में मराठा आक्रमण के समय मेवाड़ के प्रधानमंत्री अमरचंद बड़वा ने माछला मगरा के एकलिंग गढ़ पर एक तोपखाना बनवाकर उस पर दुश्मन भंजक नाम की बड़ी तोप लगवाई।

यह तोप उदयपुर की सबसे बड़ी तोप थी जिससे गोला दागने पर वह 15 किलोमीटर दूर देबारी के दरवाजे तक मार करता था।

मराठों से हुए इस युद्ध में एकलिंग गढ़ पर दुश्मन भंजक तोप की कमान महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय के पुत्र कुंवर बाघ सिंह ने अपने अरबी मुस्लिम सिपाहियों के साथ संभाली थी।

आज भी एकलिंग गढ़ के एक हिस्से में इस तोप को चलाने वाले तोपची की याद में एक दरगाह बनी हुई है जिसे तोप वाले बाबा की दरगाह कहते हैं।

ऐसा बताया जाता है कि 1769 ईस्वी के मराठा आक्रमण से जगत शोभा और दुश्मन भंजक तोपों के कारण ही उदयपुर की रक्षा हुई थी।

उदयपुर के दरवाजे - Gates of Udaipur


शहरकोट के बाद अब हम बात करते हैं उदयपुर के पोल यानी प्रवेश द्वारों की। उदयपुर शहर की शहरकोट में अलग-अलग समय में कुल 12 दरवाजों का निर्माण हुआ।

अब इन 12 दरवाजों में से 11 दरवाजे मौजूद है। सिर्फ दंडपोल नाम का एक दरवाजा अब मौजूद नहीं है।

उदयपुर के दरवाजों में से किशनपोल, सूरजपोल, देहली गेट और हाथीपोल नाम के 4 दरवाजे, सिंह द्वार कहलाते थे।

सिंह द्वार काफी मजबूत होते थे जिनमें दो दरवाजे आपस में जुड़े होते थे यानी ये दो दरवाजों वाले प्रवेश द्वार होते थे।

ये दोनों दरवाजे एक दूसरे से 90 डिग्री के Angle पर होते थे ताकि इन्हें हाथियों और लकड़ियों की टक्कर से ना तोड़ा जा सके। अब इन दरवाजों में से किशनपोल और हाथीपोल दरवाजे ही अपनी वास्तविक हालत में बचे हुए हैं।

अब हम इन 12 दरवाजों के बारे में Serial Wise तरीके से बात करते हैं।

1. हनुमानपोल (जल बुर्ज) - Hanumanpol (Jal Burj)


सबसे पहले हनुमान पोल की हम बात करते हैं। यह दरवाजा पिछोला झील के दक्षिण-पूर्वी किनारे पर जंगल सफारी रोड पर है।

इस दरवाजे को जल बुर्ज के नाम से ज्यादा जाना जाता है। माछला मगरा की शहरकोट इस दरवाजे से ही शुरू होती है।

2. रामपोल (रमणिया पोल) - Rampol (Ramaniya Pol)


जल बुर्ज के बाद हम रामपोल की बात करते हैं। यह दरवाजा माछला मगरा पहाड़ के पश्चिमी ढलान पर बना है। इस दरवाजे तक जाने के लिए शहरकोट पर चढ़ कर जाना होता है।

3. किशनपोल (कृष्ण पोल) - Kishanpol (Krishna Pol)


रामपोल के बाद हम किशनपोल की बात करते हैं। यह दरवाजा माछला मगरा के पूर्व में दक्षिण दिशा की तरफ से आने वाले मुख्य मार्ग का प्रवेश द्वार था।

माछला मगरा से शहरकोट की दीवार उतरती हुई इस दरवाजे पर आकर मिलती है।

4. उदियापोल (कमलिया पोल) - Udiyapol (Kamaliya Pol)


किशनपोल के बाद हम उदियापोल की बात करते हैं। यह दरवाजा रोडवेज बस स्टैन्ड के सामने बना हुआ है।

पहले इस दरवाजे को कमलिया पोल के नाम से जाना जाता था जिसे महाराणा सज्जन सिंह ने बदल कर महाराणा उदय सिंह के नाम पर उदियापोल कर दिया।

5. सूरजपोल - Surajpol


उदियापोल के बाद हम सूरजपोल की बात करते हैं। यह दरवाजा उदियापोल से आगे फतेह मेमोरियल के पास बना हुआ है। सूरज की पहली किरण पड़ने के कारण इस दरवाजे का नाम सूरजपोल पड़ा।

बताया जाता है कि अंग्रेजों के समय इस दरवाजे को फिरंगी दरवाजा कहा जाता था क्योंकि यहाँ पर कर्जन वायली का स्मारक बनाया गया था

इस दरवाजे से ही चित्तौड़ जाने वाली रोड़ की शुरुआत होती है इसलिए पुराने समय में यह पूर्व की तरफ से यानी चित्तौड़ की तरफ से आने वाले मुख्य मार्ग का प्रवेश द्वार था।

6. देहली गेट (दिल्ली दरवाजा) - Dehli Gate (Dilli Darwaja)


सूरजपोल के बाद हम देहली गेट की बात करते हैं। यह दरवाजा उत्तर दिशा की तरफ से आने वाले मुख्य मार्ग का प्रवेश द्वार था। दिल्ली की दिशा में होने की वजह से इस दरवाजे को दिल्ली दरवाजा कहा जाता था।

मेवाड़ के महाराणाओं ने कभी दिल्ली के बादशाहों की गुलामी नहीं की। उनका मानना था कि उन्हें दिल्ली की तरफ तो सिर्फ मरने के बाद ही जाना है।

इसलिए उन्होंने अपना श्मशान भी इस दिशा में आयड़ में बनवाया ताकि वो सिर्फ मरने के बाद ही इस दिशा में जाए। मेवाड़ के महाराणाओं को उनकी मौत के बाद इस दरवाजे से श्मशान लेकर जाया जाता था।

7. दंडपोल (देश निकाला या निर्वासन दरवाजा) - Dandpol (Desh Nikala or Nirvasan Darwaja)


देहली गेट के बाद हम दंडपोल की बात करते हैं। यह एक छोटा दरवाजा था जो देहली गेट और हाथीपोल के बीच में था।

किसी को सजा के रूप में अगर देश निकाला दिया जाता था तब इस दरवाजे को काम में लिया जाता था। दंड देने के काम आने के कारण इसे दंडपोल कहा जाता था।

उदयपुर के 12 दरवाजों में यही दरवाजा अब मौजूद नहीं है क्योंकि यह दरवाजा इस क्षेत्र की शहरकोट के साथ नष्ट हो गया है।

8. हाथीपोल - Hathipol


दंडपोल के बाद हम हाथीपोल की बात करते हैं। यह दरवाजा उत्तर और पश्चिम दिशा की तरफ से आने वाले मार्गों का प्रवेश द्वार था। इस दरवाजे के पास हाथी रखे जाते थे इसलिए इसे हाथीपोल कहा जाने लगा।

यह दरवाजा सबसे ज्यादा काम में आने वाला दरवाजा था क्योंकि एकलिंगजी जाने के लिए यही दरवाजा काम में आता था।

9. चाँदपोल - Chandpol


हाथीपोल के बाद हम चाँदपोल की बात करते हैं। यह दरवाजा शहर की पश्चिम दिशा में गणगौर घाट के पास पिछोला झील के किनारे पर सत्तापोल से आगे बना हुआ है।

चाँद की पहली किरण पड़ने के कारण इस दरवाजे का नाम चाँदपोल पड़ा। इस पोल से चाँद को देखा जा सकता था।

इस दरवाजे पर बने पुल से आप अम्बापोल और ब्रह्मपोल की तरफ अपने वाहन से जा सकते हैं। अगर आपको सज्जनगढ़ की तरफ जाना हो तो भी आपको चाँदपोल से होकर ही जाना पड़ेगा।

10 सत्तापोल (सीतापोल) - Sattapol (Sitapol)


चाँदपोल के बाद हम सत्तापोल की बात करते हैं। यह दरवाजा शहर की पश्चिम दिशा में गणगौर घाट के पास पिछोला झील के किनारे पर चाँदपोल से पहले बना हुआ है।

इस दरवाजे पर बने दायजी नाम के पैदल पुल से आप अमराई घाट की तरफ पैदल जा सकते हैं।

11. अम्बापोल - Ambapol (Ambapol)


सत्तापोल के बाद हम अम्बापोल की बात करते हैं। यह दरवाजा चांदपोल के पश्चिम में अम्बामाता मंदिर के पूर्व में बना हुआ है।

इस दरवाजे के आगे वाहनों के आने जाने के लिए एक पुल बना हुआ है जो इसे परशु घाट से जोड़ता है।

इस पुल की एक तरफ अम्बापोल से ब्रह्मपोल के बीच में जो पानी भरा है इसे कुम्हारिया तालाब कहते हैं। इसी भाग में अमरकुंड बना है।

इस पुल की दूसरी तरफ स्वरूप सागर झील स्थित है। इस झील में भी एक पुल बना है जो चाँदपोल और हाथीपोल से आने वाले Traffic को फतेहसागर और रानी रोड़ की तरफ divert करता है।

12. ब्रह्मपोल - Brihmpol


अम्बापोल के बाद हम ब्रह्मपोल की बात करते हैं। यह दरवाजा अम्बापोल से आगे पश्चिम दिशा में बना हुआ है। यह दरवाजा नगर का पश्चिमी द्वार है जिसके आगे पुल बना है।

सज्जनगढ़ की तरफ जाने वाले वाहन चाँदपोल से आकर इसी दरवाजे से होकर पुल पर से गुजरते हैं। इस दरवाजे से अम्बापोल तक भरे पानी को कुम्हारिया तालाब कहते हैं।

आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।

इस तरह की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।

उदयपुर के दरवाजों की मैप लोकेशन - Map location of Udaipur Gates














उदयपुर के दरवाजों का वीडियो - Video of Gates of Udaipur



उदयपुर के दरवाजों की फोटो - Photos of Udaipur Gates


Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 1

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 2

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 3

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 4

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 5

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 6

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 7

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 8

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 9

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 10

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 11

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 12

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 14

Udaipur Ka Parkota Aur Darwaje in Hindi 15

लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

सोशल मीडिया पर हमसे जुड़ें (Connect With Us on Social Media)

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें
हमें फेसबुकएक्स और इंस्टाग्राम पर फॉलो करें
हमारा व्हाट्सएप चैनल और टेलीग्राम चैनल फॉलो करें

डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने