महादेव ने ऐसे बचाया महाराणा प्रताप का जीवन - Kukdeshwar Mahadev Mandir Udaipur in Hindi

महादेव ने ऐसे बचाया महाराणा प्रताप का जीवन - Kukdeshwar Mahadev Mandir Udaipur in Hindi, इसमें उदयपुर के पास कुकड़ेश्वर महादेव के बारे में बताया है।

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क्या आपने महादेव के किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जिसका संबंध जंगली मुर्गों से रहा हो और इस मंदिर का नाम इन मुर्गों की वजह से पड़ा हो?

इसके साथ इस मंदिर का संबंध वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप से भी रहा है। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने इस स्थान पर भी अपना कुछ समय बिताया था।

अरावली की पहाड़ियों में घने जंगल के बीच स्थित भोलेनाथ के इस मंदिर के बगल से एक बरसाती नाला बहता है जिसकी वजह से बारिश के मौसम में यह जगह बड़ी सुंदर हो जाती है।

तो आज हम मुर्गे पर आधारित नाम वाले महादेव के इस मंदिर में चलते हैं, और उस शिवलिंग के दर्शन करते हैं जिसकी आराधना महाराणा प्रताप ने भी की थी। तो आइए शुरू करते हैं।

कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा और विशेषता - Visit and Specialties of Kukdeshwar Mahadev Temple


अरावली के पहाड़ों के बीच हरे भरे जंगल में स्थित यह मंदिर आस्था और पर्यटन दोनों का बड़ा केंद्र है। यहाँ पर भोलेनाथ के दर्शनों के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता भी देखने को मिलती है।

मंदिर तक जाने के लिए लगभग पाँच सात सौ मीटर पैदल चलना पड़ता है। इस पैदल यात्रा में थोड़ी सी चढ़ाई भी चढ़नी पड़ती है लेकिन ये ज्यादा नहीं है।

आगे एक खाई के अंदर यह मंदिर बना हुआ है। मंदिर के बगल से एक नाला बहता है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस नाले में पूरे वर्ष पानी बहता रहता है।

कहते हैं कि गर्मी के मौसम में भी इस नाले का पानी नहीं सूखता है। भोलेनाथ का जलाभिषेक इसी नाले के पानी से किया जाता है।

बारिश के मौसम में यह नाला, नदी जैसा रूप ले लेता है। कई बार बारिश ज्यादा होने पर पास के गाँव में पानी भी भर जाता है।

मंदिर के अंदर स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग के पास ही काले पत्थर की गणेश प्रतिमा के अलावा नंदी की प्रतिमा के साथ कुछ और प्रतिमाएँ विराजित हैं।


बगल में ही श्रद्धालुओं के लिए एक हॉल बना हुआ है। पास में ही एक कमरे में यज्ञ के लिए धूणा बना हुआ है जो साधु संतों की तपस्या के लिए काम आता है।

मंदिर परिसर में ही भोजन प्रसादी बनाने के लिए स्थान बना हुआ है जहाँ पर भक्तजन प्रसादी बनाते और ग्रहण करते हैं।

मंदिर के पीछे की तरफ थोड़ा आगे जाने पर कुछ समाधियाँ बनी हुई हैं। ये समाधियाँ शायद पुराने समय में यहाँ पर रहने वाले संत महात्माओं की है।

दो पहाड़ों की तलहटी में होने की वजह से मंदिर के चारों तरफ पेड़ पौधे लगे हुए हैं। जंगली एरिया होने की वजह से जंगली जानवर आने का डर भी बना रहता है।

कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास - History of Kukdeshwar Mahadev Temple


अगर हम इस स्थान के इतिहास के बारे में बात करें तो इस जगह का इतिहास काफी पुराना है। यहाँ पर स्थित शिवलिंग को कैलाशपुरी के एकलिंगनाथ मंदिर के शिवलिंग के समय का माना जाता है।

इस मंदिर के बारे में महाराणा प्रताप के समय में सबसे पहले पता चला था। ऐसा बताया जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप इस स्थान पर कुछ समय तक रहे थे।

आपको बता दें कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मुगल सैनिक हमेशा महाराणा प्रताप के पीछे पड़े रहते थे, इस वजह से महाराणा प्रताप किसी भी स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं रहा करते थे।

जब महाराणा प्रताप यहाँ पर ठहरे हुए थे तब एक रात मुगल सैनिक इस तरफ बढ़े आ रहे थे। प्रताप इससे बेखबर होकर आराम कर रहे थे।

उस रात मुर्गों ने आधी रात को ही बांग दे दी जिस वजह से सुबह का समय समझकर सभी लोग उठ गए। जैसे ही इन लोगों को मुगल सैनिकों के आने का पता चला तब इन लोगों ने अपने आप को सुरक्षित कर लिया।

तो इस प्रकार मुर्गों के असमय बांग देने की वजह से महाराणा प्रताप अपने आपको सुरक्षित कर पाए। महाराणा प्रताप के समय इस क्षेत्र में बहुत से जंगली मुर्गे हुआ करते थे।

इन मुर्गों को लोकल लैंग्वेज में कुकड़ा कहा जाता है। इस एरिया में बहुत से कुकड़े होने और इन कुकडों की वजह से महाराणा प्रताप के सतर्क हो जाने के कारण इस शिव मंदिर को कुकड़ेश्वर महादेव कहा जाने लगा।

कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर के पास घूमने की जगह - Places to visit near Kukadeshwar Mahadev Temple

कुकड़ेश्वर महादेव के पास घूमने की जगह के बारे में अगर बात करें तो इसके 15-20 किलोमीटर कि रेंज में कुंडेश्वर महादेव, घसीयार का श्रीनाथजी मंदिर और नागदा में सास बहु मंदिर, अद्भुत जी का मंदिर, कैलाशपुरी में एकलिंग जी का मंदिर आदि देखे जा सकते हैं।

कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर कैसे जाएँ? - How to reach Kukadeshwar Mahadev Temple?


अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि हम कुकड़ेश्वर महादेव कैसे जाएँ?

उदयपुर रेल्वे स्टेशन से कुकड़ेश्वर महादेव की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है। यह मंदिर लाखावली पंचायत समिति में डांगियों का गुढ़ा के पास पहाड़ों के अंदर है।

यहाँ जाने के लिए बड़गाँव होते हुए उदयपुर-गोगुंदा हाइवे तक जाकर हाईवे को क्रॉस करना होगा। हाईवे क्रॉस करने के बाद पराया की भागल वाले रास्ते पर आगे जाना होगा।

आगे जाने पर कुकड़ेश्वर महादेव जाने के लिए एक गेट बना हुआ है। इस गेट से आगे जाने पर एक स्टोन फैक्ट्री आती है।

इस फैक्ट्री के आगे रोड पर ढलान शुरू हो जाता है। आगे दो रास्ते हैं जिनमें हमें लेफ्ट साइड के रास्ते पर जाना है। यहाँ किनारे पर एक एनिकट बना हुआ है।

राइट साइड का रास्ता एक घाटी को पार करके पराया की भागल, रामा होते हुए नागदा और एकलिंगजी जाता है। पराया की भागल से लेफ्ट साइड में आगे जाने पर कुंडेश्वर महादेव जाया जा सकता है।

कुकड़ेश्वर महादेव के रास्ते पर एनिकट से आगे सड़क एक दम टूटी हुई है। कुछ आगे जाने पर आपको अपना वाहन पार्क करना होगा।

यहाँ से आगे पूरी तरह से पथरीला रास्ता है इसलिए अब आपको आधा पौन किलोमीटर तक पैदल ही जाना होगा। आगे पहाड़ी पर थोड़ा सा चढ़ना पड़ता है।

इस जगह एक धर्मशाला भी बनी हुई है लेकिन इसकी हालत रहने लायक नहीं दिखती है। यहाँ पर चारों तरफ पहाड़ और पेड़ पौधे ही नजर आते हैं। थोड़ा आगे जाने पर नीचे खाई में कुकड़ेश्वर महादेव विराजमान हैं।

इस जगह जाने के लिए बारिश का मौसम सबसे अच्छा है क्योंकि उस समय हरे भरे पहाड़ों के अलावा मंदिर के पास नाले में भी काफी पानी बहता है।

तो आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। ऐसी ही नई-नई जानकारियों के लिए हमसे जुड़े रहें।

जल्दी ही फिर मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ। तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।

कुकड़ेश्वर महादेव की मैप लोकेशन - Map location of Kukdeshwar Mahadev



कुकड़ेश्वर महादेव का वीडियो - Video of Kukadeshwar Mahadev



कुकड़ेश्वर महादेव की फोटो - Photos of Kukadeshwar Mahadev


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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