यह गुप्त गुफा थी महाराणा प्रताप का शस्त्रागार - Mayra Ki Gufa Gogunda in Hindi

यह गुप्त गुफा थी महाराणा प्रताप का शस्त्रागार - Mayra Ki Gufa Gogunda in Hindi, इसमें महाराणा प्रताप के शस्त्रागार मायरा की गुफा की जानकारी है।

Mayra Ki Gufa Gogunda in Hindi

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क्या आप उस जगह के बारे में जानना चाहते हैं जहाँ पर महाराणा प्रताप, मुग़ल बादशाह अकबर से वर्षों तक चले लगातार संघर्ष के दौरान अपने हथियारों को छिपाया करते थे?

क्या उस जगह के बारे में जानना चाहते हैं जिस जगह पर इस संघर्ष के समय में महाराणा प्रताप ने घास की रोटियाँ खाई थी?

आज हम आपको उस ऐतिहासिक जगह के बारे में बताते हैं जिसका सीधा सम्बन्ध महाराणा प्रताप से है। तो आइए शुरू करते हैं।

इस जगह पर आप आज भी जैसे ही कदम रखते हैं तो आपको ऐसा लगता है जैसे यहीं कही महाराणा प्रताप बैठे हैं और पास में ही उनका घोडा चेतक बंधा हुआ है।

यह जगह गोगुन्दा से लगभग 8 किलोमीटर और हल्दीघाटी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर जंगली क्षेत्र में स्थित एक गुफा है जिसे मायरा की गुफा के नाम से जाना जाता है। कई लोग इसे महाराणा प्रताप की गुफा के नाम से भी जानते हैं।

घने जंगल में चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के बीच एक घाटी में पहाड़ के नीचे बनी यह गुफा इस तरह से बनी हुई है कि यह किसी को नजर ही नहीं आती। एक अंजान आदमी के लिए गुफा के पास जाकर भी इसे ढूँढना काफी मुश्किल है।

कुल मिलाकर गुफा की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि ना तो यहाँ पर आसानी से पहुँचा जा सकता है और ना ही इसे आसानी से देखा जा सकता है।

इस तरह से हम कह सकते है कि महाराणा प्रताप के समय तो दुश्मन के सैनिकों द्वारा इस गुफा को ढूँढ पाना असंभव ही था।

चूँकि महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ की राजधानी गोगुन्दा ही थी इसलिए गोगुन्दा के पास में होने की वजह से मायरा की गुफा का सामरिक महत्व बहुत ज्यादा था।

यह जगह महाराणा प्रताप की सेना के हथियार रखने के काम में ली जाती थी यानि मायरा की गुफा महाराणा प्रताप की सेना के शस्त्रागार के रूप में काम में आती थी।

इस गुफा में सेना के हथियार रखे जाने के साथ-साथ ही इसे महाराणा के अस्थाई निवास के लिए भी काम में लिया जाता था।

जैसा कि हमें पता है कि महाराणा प्रताप का पूरा जीवन अकबर की सेना से संघर्ष करते हुए जंगलों में बीता है इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से वो कभी भी एक स्थान पर ज्यादा दिनों तक नहीं ठहरा करते थे।

महाराणा प्रताप अपना निवास कुछ दिनों के अंतराल पर लगातार बदलते रहते थे। ऐसा बताया जाता है कि उन संघर्ष के दिनों में महाराणा प्रताप इस गुफा में रहे थे और इन्होंने यहाँ रहकर घास की रोटियाँ भी खाई थी।

अगर हम यहाँ की लोकेशन के बारे में बात करें तो गोगुन्दा से मायरा की गुफा लगभग 8 किलोमीटर, हल्दीघाटी से लगभग 25 किलोमीटर और उदयपुर से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर जंगल में स्थित है।

उदयपुर से यहाँ पर जाने के लिए आपको गोगुन्दा से हल्दीघाटी जाने वाले रास्ते पर काकन का गुढ़ा से होकर जाना पड़ेगा। हल्दीघाटी से जाने के लिए भी हल्दीघाटी से गोगुन्दा वाले रास्ते पर काकन का गुढ़ा होकर ही जाना पड़ेगा।

वैसे आप मायरा की गुफा तक उदयपुर से इसवाल और यहाँ से दूलावतों का गुढ़ा होकर भी जा सकते हैं लेकिन इस रास्ते से पहुँचना थोडा मुश्किल है।

इसलिए उदयपुर, गोगुन्दा और हल्दीघाटी से मायरा की गुफा जाने के लिए सबसे सही रास्ता काकन का गुढ़ा होकर ही है।

इस रास्ते पर भी सड़क लगभग डेढ़-दो किलोमीटर तक ऊबड़-खाबड़ और टूटी हुई है और उस पर पत्थरों के अलावा डामर का निशान भी नहीं है।

इस डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी को आपको पैदल ही तय करना होगा क्योंकि इस पर कार से जाना मुमकिन नहीं है।

आप थोड़ी कठिनाई के साथ बाइक ले जा सकते हैं लेकिन इस बात का जरूर ध्यान रखें कि अगर आपकी बाइक का टायर पंक्चर हो गया तो दूर दूर तक कोई ठीक करने वाला नहीं है।

इस उबड़ खाबड़ रास्ते को पार करने के बाद पहाड़ी के नीचे जाने पर एक दो मंजिला भवन बना हुआ दिखता है। यह भवन पुराना महल है जिसके दो दरवाजे हैं। एक दरवाजे पर अश्वशाला और दूसरे पर सूर्य द्वार लिखा हुआ है।

ये महल उसी समय के बने हुए हैं और बताया जाता है कि इनमें महाराणा प्रताप रहा करते थे। ग्रामीणों द्वारा महल की देखरेख होने की वजह से इनकी हालत काफी ठीक है और रहने योग्य है।


इस महल के पीछे गुफा है जिसमे इन दोनों दरवाजों से प्रवेश किया जा सकता है। महल के बगल में भी एक दरवाजा है जिससे भी गुफा के अन्दर जाया जा सकता है।

गुफा के अन्दर अश्वशाला और रसोई घर है। अश्वशाला में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक को बांधा जाता था इसलिए इस स्थान को आज भी पूजा जाता है।

इसके बगल में हिंगलाज माता का मंदिर बना हुआ है जिसमें माता की सुन्दर प्रतिमा विराजित है। गुफा को एक पवित्र स्थली का दर्जा प्राप्त है जिस वजह से इसमें जूते चप्पल उतारने के बाद ही प्रवेश करना होता है।

गुफा के ऊपर की पहाड़ी से गुफा के बगल में एक प्राकृतिक झरना गिरता है। बारिश के दिनों में यह स्थान काफी आकर्षक हो जाता है। गुफा में भी जगह-जगह से पानी टपकने लग जाता है।

झरने की वजह से आस पास के साथ–साथ गुफा की प्राकृतिक सुन्दरता भी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मुख्य गुफा सीढ़ियों से आगे कुछ ऊपर जाने के बाद में दिखाई देती है।

बारिश के मौसम में इसमें भी जगह-जगह से पानी टपकता है। इस गुफा के काफी अन्दर जाने पर रूपण माता का मंदिर है।

गुफा की सबसे बड़ी खासियत ये है कि बाहर से देखने पर इसका प्रवेश द्वार दिखाई नहीं देता है, जिस वजह से किसी को इसका पता नहीं चल पाता है। इसी वजह से इस गुफा को शस्त्रागार बनाया गया था।

गुफा के अंदर जाने के लिए तीन रास्ते बताए जाते हैं जो कि काफी टेढ़े मेढे है और अपने आपमें किसी भूल-भुलैया से कम नहीं है।

अगर गुफा के आर्किटेक्चर के बारे में बात करें तो यह प्राकृतिक गुफा शरीर की नसों जैसी आकृति में बनी हुई है। इसके थोडा सा अन्दर जाने पर एक अलग ही अहसास होता है।

ऐसा बताया जाता है कि यह गुफा महाराणा प्रताप की राजधानी गोगुन्दा में निकलती है। गुफा के ज्यादा अन्दर जाना संभव नजर नहीं आता है क्योंकि अन्दर काफी अँधेरा है।

चारों तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ यह स्थल दुर्गम होने के बावजूद बहुत रमणीक स्थल है। अगर कुछ कमी है तो वह इस जगह पर पहुँचने के लिए सड़क का नहीं होना है।

हाल ही में राज्य सरकार ने मायरा की गुफा के जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण के लिए 5 करोड़ 40 लाख रुपए मंजूर किए हैं जिनसे गुफा तक पहुँचने के लिये सड़क, हेरिटेज गेट, टिकट विंडो कक्ष आदि के निर्माण के साथ गुफा का जीर्णोद्धार किया जायेगा।

उम्मीद है यह कार्य जल्दी ही पूरा हो जायेगा और मायरा की गुफा उदयपुर घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए एक मुख्य टूरिस्ट प्लेस के रूप में उभर पायेगी।

मायरा की गुफा की मैप लोकेशन - Map Location of Mayra Ki Gufa



मायरा की गुफा का वीडियो - Video of Mayra Ki Gufa




मायरा की गुफा की फोटो - Photos of Mayra Ki Gufa


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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