उदयपुर राजपरिवार की सैकड़ों छतरियाँ - Mahasatiya Cenotaphs Ayad in Hindi

उदयपुर राजपरिवार की सैकड़ों छतरियाँ - Mahasatiya Cenotaphs Ayad in Hindi, इसमें उदयपुर में महासतिया स्थल यानी राजपरिवार की छतरियों की जानकारी है।

Mahasatiya Cenotaphs Ayad in Hindi

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उदयपुर की पुरानी शहरकोट से दो मील पूर्व में आयड़ नदी के पास आहड ग्राम स्थित है जो अब उदयपुर का ही एक भाग है। गौरतलब है की चित्तौड़गढ़ से पहले आहड़ ही गुहिलों की राजधानी थी।

यहाँ पर चार हजार वर्ष पुरानी आयड़ सभ्यता के मुख्य टीले के पास महासत्या या महासतिया स्थल स्थित है। उदयपुर रेलवे स्टेशन से यहाँ की दूरी लगभग पाँच किलोमीटर है।

महासत्या स्थल में मेवाड़ राजपरिवार के सदस्यों की छतरियाँ एवं इसके पास में एक हजार वर्ष प्राचीन गंगू कुंड स्थित है। पहले ये दोनों स्थल एक ही परिसर में मौजूद थे लेकिन अब इन्हें दीवार बनाकर अलग कर दिया गया है।

दोनों के प्रवेश द्वार भी अलग-अलग है। गंगू कुंड की देख रेख पुरातत्व विभाग के अधीन है जबकि महासत्या स्थल की देख रेख श्री एकलिंग जी ट्रस्ट, सिटी पैलेस के अधीन है।

महासत्या स्थल मेवाड़ के राजपरिवार के सदस्यों के दाह संस्कार की स्थली रहा है। इसी स्थान पर महाराणा प्रताप के पुत्र महाराणा अमर सिंह के साथ उदयपुर के आगामी सभी महाराणाओं का अंत्येष्टि संस्कार हुआ है।

लगभग 3.2 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले महासत्या परिसर में तीन क्षेत्रों में विभाजित छोटी बड़ी कुल 371 छतरियाँ है। आहड की मुख्य सड़क की ओर वाले भाग में 95, महाराणा अमर सिंह की छतरी वाले क्षेत्र में 199 छतरियाँ तथा गंगोद्भव कुंड वाले परिसर में 77 छतरियाँ है।

इन छतरियों में लगभग 19 छतरियाँ उदयपुर के महाराणाओं की है। ये छतरियाँ एक ऊँचे प्लेटफार्म पर बनी हुई है जिनकी गुम्बदाकार छत कई स्तंभों पर टिकी हुई है। छत एवं स्तंभों पर नक्काशी देखकर सोलहवीं शताब्दी के मंदिरों की नक्काशी याद आ जाती है।

लगभग सभी छतरियों में भगवान शिव की प्रतिमा के साथ-साथ सम्बंधित महाराणा के साथ सती होने वाली रानियों को भी प्रतिमा के रूप में उकेरा गया है।

परिसर के अन्दर गंगोद्भव कुंड के पास में ही महाराणा प्रताप के पुत्र महाराणा अमर सिंह की छतरी है जिसकी नींव 1620 ईस्वी में रखी गई। यह छतरी महासत्या स्थल की सबसे पुरानी छतरी है।

महाराणा अमर सिंह की छतरी के पश्चात ही इस क्षेत्र में महाराणाओं, राजपरिवार के सदस्यों एवं सामंतों की छतरियाँ बनना शुरू हुई थी। यह छतरी शिल्प एवं वास्तु कला के साथ उत्कृष्ट नक्काशी का अनुपम उदाहरण है।


महाराणा अमर सिंह की छतरी के दक्षिण पूर्व में दो छोटी छतरियाँ महाराणा करण सिंह एवं महाराणा जगत सिंह की है। दक्षिण की ओर महाराणा अमर सिंह द्वितीय एवं महाराणा जगत सिंह द्वितीय की विशाल छतरियाँ हैं।

पास में ही महाराणा भीम सिंह, महाराणा जवान सिंह, महाराणा सरदार सिंह, महाराणा स्वरूप सिंह, महाराणा शम्भु सिंह एवं महाराणा सज्जन सिंह की छतरियाँ हैं।

उत्तर एवं उत्तर पूर्व की और रियासत से जुड़े सरदारों, सामंतों की छतरियाँ हैं। एक ही स्थल पर इन सभी छतरियों का निर्माण राज परिवार के सामाजिक रीति रिवाज एवं संस्कृति के प्रति लगाव को दर्शाता है।

इस स्थल की छतरियाँ मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा अपनी मातृभूमि के लिए किए गए उत्सर्ग एवं बलिदान का स्मरण कराती हैं।

महाराणा संग्राम सिंह की छतरी 56 खम्भों वाली छतरी है जिसका अष्ट कोणीय गुम्बद आठ छोटे स्तंभों पर टिका है। प्राप्त स्रोतों से ऐसा पता चलता है कि 1734 ईस्वी में महाराणा संग्राम सिंह के दाह संस्कार में उनके साथ उनकी 21 रानियाँ सती हुई थी।

महासत्या परिसर में अन्दर की तरफ एक बावड़ी बनी हुई है जिसमें नीचे तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। देखने पर यह बावड़ी काफी पुरानी प्रतीत होती है।

नब्बे के दशक में महाराणा अरविन्द सिंह मेवाड़ ने इन छतरियों के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू करवाया। यहाँ पर कुछ हॉलीवुड की फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। महासत्या से सटा हुआ गंगोद्भव कुंड का परिसर मौजूद है।

इस कुंड को पवित्र गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि गुहिल राजा की साधना से माँ गंगा इस कुंड में प्रकट हुई और इसी वजह से इस कुंड में स्नान करना, गंगा स्नान के समान पवित्र माना जाता है।

गंगोद्भव कुंड के बीच में एक ऊँचा प्लेटफार्म है जिसे राजा गंधर्वसेन की छतरी के नाम से जाना जाता है। राजा गंधर्वसेन को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का भाई माना जाता है।

गंगू कुंड के निकट एवं सम्पूर्ण परिसर में अनेक छतरियाँ मौजूद है जिनमें मेवाड़ के सामंतों एवं उनकी पत्नियों की छतरियाँ शामिल हैं।

दसवीं शताब्दी में गंगू कुंड परिसर में मेवाड़ के गुहिल शासक अल्लट ने एक शिव मंदिर परिसर बनवाया था जो आज भी मौजूद है।

अगर आप उदयपुर भ्रमण पर जा रहे हैं तो आपको महासत्या में मौजूद मेवाड़ के पराक्रमी शासकों की छतरियाँ, पवित्र गंगू कुंड एवं एक हजार वर्ष प्राचीन शिव मंदिर को अवश्य देखना चाहिए।

आयड़ की छतरियों की मैप लोकेशन - Map Location of Mahasatiya Cenotaphs Ayad



आयड़ की छतरियों का वीडियो - Video of Mahasatiya Cenotaphs Ayad



आयड़ की छतरियों की फोटो - Photos of Mahasatiya Cenotaphs Ayad


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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