शक्तावत राजपूतों का पांसल किला - Pansal Fort in Hindi

शक्तावत राजपूतों का पांसल किला - Pansal Fort in Hindi, इसमें शक्तावत राजपूतों के 12 गांवों के गढ़ पांसल के किले के बारे में जानकारी दी गई है।

Pansal Fort in Hindi

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आजादी से पहले राजस्थान को राजपूताना के नाम से जाना जाता था। यहाँ पर राजपूत राजाओं का शासन हुआ करता था। बड़ी रियासतों के अधीन अनेक छोटी-छोटी रियासतें मौजूद थी।

इन सभी छोटी रियासतों के अपने ठिकाने हुआ करते थे जहाँ पर राजकार्य और निवास के लिए बाकायदा किले भी हुआ करते थे। किले पर जिसका अधिकार होता था उसे ही उस क्षेत्र का राजा माना जाता था।

आज हम आपको मेवाड़ के एक ऐसे ही किले पर लेकर चलते हैं जिसे पांसल फोर्ट के नाम से जाना जाता है। यह फोर्ट भीलवाडा चित्तौड़गढ़ नेशनल हाईवे पर भीलवाडा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

नेशनल हाईवे के एक तरफ छोटी पहाड़ी के ऊपर बना होने की वजह से यह सड़क से बड़ी आसानी से दिखता है।

अब इस फोर्ट की दशा सही नहीं है। यह जगह-जगह से टूट गया है, कई जगह से ढह गया है। इसके खंडहरों को देखकर लगता है कि पुराने समय में शायद यह किला काफी खूबसूरत रहा होगा।

प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि इस किले का निर्माण कुछ शताब्दियों पहले शक्तावत ठाकुरों ने करवाया था। किले के अधिकार क्षेत्र में 12 गाँव आने की वजह से इसे 12 गाँवों के गढ़ के नाम से भी जाना जाता था।

पुराने ज़माने में जमीन से इस किले की ऊँचाई काफी अधिक थी। किले के बगल का स्थान खाई की तरह दिखाई देता था जिसमें से एक नदी बहा करती थी।

उस समय यहाँ का नजारा बहुत मनमोहक हुआ करता होगा। शाम के समय में डूबते सूरज के साथ चारों तरफ पहाड़ियाँ और उनके बीच में बहती हुई नदी को देखकर कैसा अहसास होता होगा, आप अंदाजा लगा सकते हैं।

समय की मार और किले के बगल से नेशनल हाईवे बन जाने की वजह से अब यह किला उतना ऊँचा और आकर्षक नहीं लगता जितना पहले लगा करता था। बगल में बहने वाली नदी ने भी अब एक छोटे तालाब का रूप ले लिया है।


अगर इस किले की आकृति के बारे में बात करें तो यह किला रेक्टंगुलर शेप में बना हुआ है जिसमें दो बड़े-बड़े चौक बने हुए हैं। पूरे किले को चारों तरफ से बाहर और अंदर दो दीवारों द्वारा सुरक्षित किया गया है।

इनमें से अगर किले की अन्दर की दीवारों की बात की जाए तो इनकी चौड़ाई लगभग डेढ़-दो फीट है। ये दीवारें किले के चारों तरफ बने बुर्जों से जुड़ी हुई है।

बुर्ज और दीवारों की सबसे ख़ास बात यह है कि कई जगह इन्हें चिकनी मिट्टी से बनाया गया है। शायद किले को सुरक्षित रखने के लिए भरतपुर के लोहागढ़ किले से प्रेरणा ली गई है।

किले के एंट्री गेट से प्रवेश करने पर सामने बड़ा चौकोर मैदान आता है जिसके चारों तरफ दो मंजिला निर्माण हो रखा है और कमरे ही कमरे बने हुए हैं।

जिस प्रकार सभी पुराने किलों में तलघर यानी बेसमेंट बने होते थे ठीक उसी प्रकार इन कमरों के नीचे भी तहखाने बने हुए हैं।

सामने की तरफ दूसरी मंजिल पर कमरे कुछ भव्यता लिए हुए हैं। ये कमरे शायद राजपरिवार के सदस्यों या किसी बड़े अधिकारी के काम में आते होगे।

आपको पता होगा कि पुराने समय में, इन किलों में ही राजपरिवार रहता था और साथ ही यही से सारे राजकार्य निपटाए जाते थे।

बगल की बिल्डिंग में कुछ झरोखे बने हुए हैं। इनमें कुछ झरोखे शायद रानियों के लिए और इनके बीच में मौजूद एक झरोखा शायद राजा के लिए बना होगा। शायद इस झरोखे में आकर राजा नीचे चौक में मौजूद लोगों से मिला करते होंगे।

दरवाजे से इस बिल्डिंग में प्रवेश करने पर अन्दर भी एक बड़ा चौक मौजूद है। इस चौक के चारों तरफ भी दो मंजिला निर्माण हो रखा है और कमरे ही कमरे बने हुए हैं।

पुराने समय में इन कमरों में रंग बिरंगे भित्ति-चित्रों युक्त छत और दीवारें, सुन्दर दरवाजे और खिड़कियाँ मौजूद थे लेकिन अब सब ख़त्म हो गया है।

किले की छत पर जाकर आप पूरे पांसल कस्बे को देख सकते हैं। यहाँ से पास के तालाब, पहाड़ियों के साथ-साथ हरियाली के रूप में मौजूद प्राकृतिक सुन्दरता का आनंद लिया जा सकता है।

शाम के समय में यहाँ से डूबता सूरज दिखाई देता है जो इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा देता है।

किले से कुछ दूरी पर यहाँ के शासकों की छतरियाँ बनी हुई है। छतरियों पर घुड़सवार योद्धा के साथ कुछ स्त्रियों की आकृति बनी हुई है जो शायद उस योद्धा और उसके साथ सती होने वाली रानियों को दर्शाती है।

अब इस किले का रीनोवेशन किया जा रहा है जिसके बारे में बताया जा रहा है कि जल्द ही यह किला एक भव्य होटल में बदल जायेगा।

अगर आप उदयपुर की तरफ जा रहे हैं तो आपको रास्ते के बीच में चट्टान पर खड़े इस किले को एक नजर अवश्य देख लेना चाहिए।

पांसल के किले की मैप लोकेशन - Map Location of Pansal Fort



पांसल के किले का वीडियो - Video of Pansal Fort



पांसल के किले की फोटो - Photos of Pansal Fort


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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