खंडेला की कहानी और इतिहास - History of Khandela in Hindi

खंडेला की कहानी और इतिहास - History of Khandela in Hindi, इसमें महाभारतकालीन कस्बे खंडेला के सम्पूर्ण इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।

History of Khandela in Hindi

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सीकर जिले में स्थित खंडेला कस्बा धार्मिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों की स्थली के साथ-साथ बहुत से समाजों की जन्म स्थली भी है।

हजारों वर्ष पुराने इस कस्बे ने अपने आगोश में कई ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासतों को छुपा कर रखा है।

वर्तमान खंडेला को इतिहास में तीन नामों, खण्डपुर (Khandapura), खंडिल्ल (Khandilla) और खड़्गकूप (Khadagakupa) से संबोधित किया गया है।

961 ईस्वी के हर्ष शिलालेख के अनुसार इसका नाम खड़्गकूप था। सिद्धसेनसूरी की सर्वतीर्थमाला, हम्मीर महाकाव्य एवं कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति में इसे खण्डिल्ल के नाम से संबोधित किया गया है।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार पता चलता है कि खंडेला की स्थापना प्राचीन भारत के चेदि महाजनपद के राजा शिशुपाल (भगवान कृष्ण के फुफेरे भाई) के एक वंशज ने की थी।

अगर खंडेला के इतिहास के विषय में बात करें तो पता चलता है कि खंडेला का महाभारतकालीन नाम खण्डपुर (Khandapura) था। खण्डपुर के राजा ने महाभारत के युद्ध में भाग भी लिया था।

ऐसा भी माना जाता है कि महाभारत में जो खंड नामक राजा का जिक्र है उसका संबंध वर्तमान खंडेला से है। खंड राजा के नाम की वजह से इसे खंडस्य इला कहा जाता था।

खंडस्य इला का समास विग्रह करने से इसके दो अर्थ निकाले जाते हैं जिनमें एक खंड राजा की पृथ्वी और दूसरा खंड-खंड हुई पृथ्वी माना जाता है।

खंडेला नगर के बीच में से एक नदी बहा करती थी जिसकी वजह से यह दो भागों में विभाजित था। आजादी से पहले तह यहाँ दो राजाओं का राज था जिनमें एक बड़ा पान और दूसरा छोटा पाना के नाम से जाना जाता है।

बाद में यहाँ पर नाग वंशीय चौहान राजाओं का प्रभाव रहा। सातवीं शताब्दी में यहाँ पर आदित्य नाग धूसर नामक राजा का शासन था।

वर्ष 1084 ईस्वी में नाडोल (पाली) के राजकुमार नरदेव चौहान ने यहाँ के तत्कालीन शासक कुंवरसिंह डाहिल को परास्त कर खंडेला पर अधिकार किया। नरदेव चौहान के वंशजों को निरबाण (निर्बाण) नाम से जाना जाने लगा।

कालीबाय बावड़ी से प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार 1535 ईस्वी में खंडेला पर निर्बाण राजाओं का शासन था एवं तत्कालीन शासक का नाम रावत नाथू देव निरबाण था।

वर्ष 1578 ईस्वी में खंडेला के शासक पीपाजी निरबाण को हराकर रायसल ने खंडेला में शेखावतों का राज्य कायम किया। इसके बाद आजादी के समय तक खंडेला पर शेखावत राजाओं का अधिकार रहा।

निरबाण राजाओं के सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय बात यह है कि दिल्ली के इतना अधिक नजदीक होने के बावजूद भी इन्होंने कभी अफगानों और मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की।


अकबर काल में तो निरबाणों पर मुगल दरबार में उपस्थित होने के लिए निरंतर दबाव पड़ता रहा परन्तु ना तो इन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार की और ना ही कभी उसके यहाँ नौकरी करने गए।

यहाँ तक की इन्होंने अकबर को कभी कर भी नहीं दिया। परन्तु बाद के शासक इस रुतबे को कायम नहीं रख पाए।

खंडेला पर कई प्रतापी राजाओं ने आक्रमण भी किए जिनमें रणथम्भोर के हम्मीर चौहान और मेवाड़ के महाराणा कुम्भा का नाम प्रमुख है।

रणथम्भोर के शासक हम्मीर चौहान ने 1285 ईस्वी में खंडेला पर आक्रमण किया जिसका उल्लेख हम्मीर महाकाव्य में मिलता है।

महाराणा कुम्भा ने 1460 ईस्वी में भी खंडेला पर आक्रमण किया था जिसका उल्लेख चित्तौड़ के कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति पर है। वर्तमान में खंडेला की ऐतिहासिक विरासतों में गढ़, किले, बावड़ियाँ, हवेलियाँ एवं छतरियाँ आदि प्रमुख है।

खंडेला के पहाड़ों में निरबाण राजाओं के किलों के अवशेष मौजूद होने के साथ-साथ जमीन पर छोटा पाना एवं बड़ा पाना गढ़ के रूप में शेखावत राजाओं की विरासत मौजूद है।

अगर कुएँ और बावड़ी की बात की जाए तो आजादी के बाद तक खंडेला में कुल 52 बावडियाँ हुआ करती थी जिसकी वजह से इसे बावन बावडियों वाला खंडेला या बावडियों का शहर कहा जाता था।

इन बावडियों में कालीबाय, बहूजी, सोनगिरी (सोंगरा), मूनका, पलसानिया, मांजी, द्रौपदी, पोद्दार, काना, लाला, द्वारकादास आदि के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं।

आज खंडेला जलसंकट से जूझ रहा है परन्तु प्राचीन समय में ऐसा नहीं था। खंडेला क्षेत्र में मैंडा, कांतली (कांटली), दोहन, कृष्णावली, साठी नामक कई नदियाँ बहती थी जिनमें कांतली नदी का उद्गम स्थल तो खंडेला की पहाड़ियाँ ही है।

इस नदी के किनारे पर तो प्रसिद्ध ताम्र युगीन गणेश्वर सभ्यता ने भी जन्म लिया है। धार्मिक रूप से अगर देखा जाए तो यहाँ पर विभिन्न धर्म फले और फूले हैं।

सातवीं शताब्दी में खंडेला शैवमत का मुख्य केंद्र था। वर्ष 644 ईस्वी में राजा आदित्यनाग धूसर ने यहाँ पर अर्धनारीश्वर का एक मंदिर बनवाया था।

बाद में इस मंदिर के ध्वंसावशेष से एक नया मंदिर बना जिसे खंडलेश्वर के नाम से जाना जाता है। इस बात की पुष्टि 1008 ईस्वी में प्राप्त खंडेला शिलालेख से होती है।

यह भूमि महान कृष्ण भक्त करमेती बाई की जन्म स्थली भी है जिन्हें कृष्ण भक्ति में मीरा बाई के तुल्य माना जाता है। खंडेला में इनका निवास शेखावत राजाओं के समय में रहा था।

यहाँ पर खंडलेश्वर महादेव के साथ-साथ चारोड़ा धाम का शिव मंदिर, चामुण्डा माता का मंदिर, बिहारीजी का मंदिर, नृसिंह का मंदिर एवं किले वाले बालाजी का मंदिर प्रमुख हैं।

यह क्षेत्र जैन धर्म की गतिविधियों का भी केंद्र रहा है। आठवीं शताब्दी में जिन सेनाचार्य ने यहाँ पर एक चौहान नरेश को जैन धर्म की दीक्षा दी थी।

इस स्थान का धार्मिक रूप में उल्लेख सिद्धसेन सूरि ने सकल तीर्थ सूत्र में किया है। सिद्धसेनसूरी की 1066 ई। में रचित सर्वतीर्थमाला में खण्डिल्ल (खंडेला), खट्टउसूस (खाटू) के नाम आए हैं।

चौदहवीं शताब्दी में असाधारण प्रतिभाशाली जैन आचार्य जिनप्रभ सूरि ने भी यहाँ निवास किया था। जैन धर्म में प्रख्यात खंडिल्ल गच्छ भी इसी के नाम पर है।

वैश्य समाज के कुछ वंशों का उद्भव खंडेला से जुडा हुआ माना जाता है। मान्यता के अनुसार खंडेला के चौहान शासक खंग के मंत्री धनपाल के बीजा, महेश, खांडू और सूंडा नामक चार पुत्र थे।

इन चार पुत्रों से वैश्य समाज के चार अलग-अलग वंश निकले। इनमें बीजा से विजयवर्गीय, महेश से माहेश्वरी, खांडू से खंडेलवाल और सूंडा से सरावगी नामक चार चार वंश निकले।

खंडेलवाल वैश्य समाज ने तो अपने उद्भव स्थल खंडेला को एक तीर्थ स्थल के रूप में माना है एवं पलसाना रोड पर अपनी 37 कुल देवियों एवं गणेशजी को समर्पित एक भव्य खंडेलवाल वैश्य धाम (खंडेला धाम) का निर्माण करवाया है।

खंडेला अपने गोटा उद्योग के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध था। यहाँ से गोटा तैयार होकर पूरे भारत में जाता था। हजारों परिवार इस उद्योग से जुड़े थे लेकिन बदलते समय में सब खत्म हो गया।

वर्तमान में खंडेला कस्बा अपनी ऐतिहासिक और कलात्मक विरासतों को खो चुका है। पेयजल की किल्लत और रोजगार के अभाव की वजह से बहुत से लोग यहाँ से पलायन कर चुके हैं।

लेकिन कोई दुनिया में कही भी चला जाए परन्तु जब बात अपनी पैतृक भूमि की होती है तो दिल अपने पुरखों की मिट्टी में अपनी जड़े ढूँढने के लिए छटपटाने जरूर लगता है।

यह मिट्टी हमारे लिए पूजनीय इसलिए हो जाती है क्योंकि इसमें हमारे पुरखों का खून और पसीना मिला होता है और इसका एक-एक कण हमें उनके आशीर्वाद की याद दिलाता है।

यह मिट्टी हमारे लिए इसलिए भी पूजनीय हो जाती है क्योंकि इसमें हमारे बचपन की अविस्मरणीय यादें जुड़ी होती हैं।

खंडेला की मैप लोकेशन - Map Location of the History of Khandela



खंडेला के इतिहास का वीडियो - Video of the History of Khandela



खंडेला के इतिहास की फोटो - Photos of the History of Khandela


History of Khandela in Hindi 1

History of Khandela in Hindi 2

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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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