उदयपुर के अमरनाथ की गुफा - Gupteshwar Mahadev Gufa Udaipur in Hindi

उदयपुर के अमरनाथ की गुफा - Gupteshwar Mahadev Gufa Udaipur in Hindi, इसमें उदयपुर के अमरनाथ कहे जाने वाले गुप्तेश्वर महादेव गुफा मंदिर की जानकारी है।

Gupteshwar Mahadev Gufa Udaipur in Hindi

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आज हम आपको पहाड़ के ऊपर एक प्राचीन गुफा मंदिर की यात्रा करवाने वाले हैं जिसमें हजारों सालों से भगवान शिव अपने स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान थे।

ऐसा कहा जाता है कि गुफा के अंदर यह स्वयंभू शिवलिंग पानी के रिसाव की वजह से अपने आप बना था। प्राकृतिक रूप से शिवलिंग बनने की वजह से इस जगह को उदयपुर का अमरनाथ कहा जाता है।

कई दशकों पहले प्राकृतिक शिवलिंग के खंडित हो जाने के कारण अब यहाँ पर शिवलिंग की जगह महादेव के पंचमुखी विग्रह की पूजा अर्चना होती है। इस विग्रह को पंचमुखी गंगाधर विग्रह कहा जाता है।

ऐसी किंवदंती है कि इस जगह पर महाराणा प्रताप आया करते थे। उस समय इस गुफा को सुआ गुफा के नाम से जाना जाता था।

प्राकृतिक रूप से बनी हुई इस प्राचीन गुफा में कई संतों ने तपस्या की है। बताया जाता है कि यहाँ के एक संत रोड़ीदास जी के आशीर्वाद से शिवरती ठिकाने के राजकुमार फतेह सिंह मेवाड़ के महाराणा बने थे।

भारत की आजादी के बाद संत बृज बिहारी जी ने यहाँ आकर इस जगह का विकास करके गुफा में पंचमुखी महादेव के विग्रह की सपरिवार प्रतिष्ठा करवाई और इस जगह को गुप्तेश्वर महादेव नाम दिया।

इस गुफा की एक खास बात यह है कि यहाँ पर आकर भोलेनाथ के दर्शन करने से किसी भी तनाव ग्रस्त व्यक्ति का सारा तनाव दूर हो जाता है।

तो चलिए आज हम उदयपुर के अमरनाथ यानी गुप्तेश्वर महादेव गुफा की यात्रा करके इसके बारे में विस्तार से जानते हैं। आइए शुरू करते हैं।

गुप्तेश्वर महादेव गुफा की यात्रा और विशेषता - Visit and specialty of Gupteshwar Mahadev Cave


गुप्तेश्वर महादेव की गुफा जिस पहाड़ पर बनी है उसे होड़ा पर्वत कहा जाता है। यहाँ पर  जाने के लिए सड़क पर एक तोरण द्वार बना हुआ है।

तोरण द्वार को पार करके ढाई तीन सौ मीटर अंदर जाने पर बृज बन सरोवर नामक तालाब बना हुआ है। इसके पास ही पार्किंग के लिए जगह बनी है।

बारिश के मौसम में आसपास के पहाड़ों से पानी आने के कारण यह तालाब भर जाता है। तालाब की पाल पर दो छतरियाँ बनी हुई है।

इसी जगह से गुफा तक जाने के लिए पहाड़ पर लगभग 600 मीटर की चढ़ाई शुरू होती है। पहाड़ पर पैदल जाने के लिए पक्का रैम्प बना हुआ है। गुफा के पास में कुछ सीढ़ियाँ भी चढ़नी पड़ती है।

पहाड़ पर जाकर देखने से दूर-दूर तक का बड़ा सुंदर दृश्य दिखाई देता है। पहाड़ से पास के Phanda और Rundela तालाब भी दिखाई देते हैं।

गुफा के मुख्य द्वार के सामने इस जगह का सम्पूर्ण विकास करवाने वाले और गुफा को गुप्तेश्वर महादेव नाम देने वाले संत बृज बिहारी बन महाराज की समाधि बनी हुई है।

पास ही महात्मा बृज बिहारी बन आश्रम बना हुआ है। अब इस आश्रम में बृज बिहारी महाराज से दीक्षा लिए हुए तन्मय बन महाराज विराजते हैं।

पास में संकटमोचन हनुमान मंदिर बना हुआ है जिसमें हनुमान जी की भव्य प्रतिमा विराजित है। आगे गोल कुटिया और उसके नीचे पानी का कुंड बना हुआ है।

मुख्य गुफा के द्वार पर भगवान गणेश द्वारपाल के रूप में विराजते हैं। गुफा लगभग 100 मीटर लंबी है और इसकी अंदर जाने के लिए इसकी चौड़ाई भी पर्याप्त है। गुफा में पहले नीचे उतरना पड़ता है और फिर उसके बाद थोड़ी सीढ़ियाँ चढ़नी होती है।

अंत में मुख्य गुफा आती है जिसमें भोलेनाथ विराजित है। यह गुफा काफी चौड़ी है जिसमें कई लोग बहुत आराम से रह सकते हैं।

हजारों वर्षों से ना जाने कितने ही संत महात्माओं ने इस गुफा में तपस्या की है। इन संत महात्माओं ने एक धूणा बना रखा था जिसमें ये लोग यज्ञ किया करते थे।

गुफा के अंदर पंचमुखी महादेव का विग्रह सपरिवार विराजमान है। महादेव की प्रतिमा बड़ी भव्य और मनोरम है। भक्तजन इसे पंचमुखी गंगाधर विग्रह के नाम से जानते हैं।


महादेव के इस विग्रह की सपरिवार प्रतिष्ठा बृज बिहारी महाराज ने 11 मई 1962 वैशाख सुदी छठ के दिन करवाई थी। उस समय से इस जगह को गुप्तेश्वर महादेव गुफा के नाम से जाना जाता है।

महादेव की प्रतिमा के सामने की तरफ प्राचीन धूणा बना हुआ है। समय के साथ गुफा के अंदर हुए कई बदलावों की वजह से अब इस धूणे की मौलिकता कम हो गई है।

गुफा में बिजली मौजूद है जिसकी वजह से इसमें पर्याप्त लाइट है। ऐसा बताया जाता है कि यह गुफा पूरी तरह से वातानुकूलित है यानी सर्दियों में गरम और गर्मी में ठंडी रहती है।

गुफा की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें एक छोटी गुफा और मौजूद है। साल 1962 तक इस छोटी गुफा में एक स्वयंभू शिवलिंग मौजूद था।

बाद में किसी वजह से शिवलिंग के खंडित हो जाने के कारण इसे मुख्य गुफा में धूणे के पास स्थापित करके उसके ऊपर पंचमुखी गंगाधर विग्रह की प्रतिष्ठा करवाई गई।

बारिश के मौसम में गुफा में कई जगह पानी टपकने लग जाता है। पूरे पानी की निकासी इस छोटी गुफा के जरिए ही होती है। 

इस छोटी गुफा का दूसरा छोर किधर है, इस बात का किसी को पता नहीं है। सुरक्षा की दृष्टि से अब इस गुफा का मुंह लोहे का गेट लगाकर बंद कर दिया गया है।

अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि इस बड़ी गुफा में यह छोटी गुफा कहाँ पर है? हम आपको बता देते हैं कि यह छोटी गुफा गुफा के अंत में मुख्य गुफा की सीढ़ियों के पास है।

अगर आप इन सीढ़ियों की लेफ्ट साइड में देखोगे तो आपको एक लोहे का गेट लगा हुआ दिखाई देगा। इस गेट के अंदर ही वह गुफा है।

गुप्तेश्वर महादेव की गुफा में कुंड, सीढ़ियाँ, फर्श, पाताल घर आदि के निर्माण के साथ कई जगह कलर हो जाने की वजह से इसकी प्राचीनता में थोड़ी कमी लगती है लेकिन समय के साथ सुविधाएँ भी बहुत जरूरी हैं।

गुप्तेश्वर महादेव गुफा का इतिहास - History of Gupteshwar Mahadev Cave


अगर हम गुप्तेश्वर महादेव गुफा के इतिहास के बारे में बात करें तो इसका इतिहास बहुत पुराना है। प्राकृतिक रूप से बनी यह गुफा हजारों साल पुरानी है।

जिस पहाड़ पर यह गुफा बनी है उसे होड़ा पर्वत कहा जाता है। कहते हैं कि महाराणा प्रताप इस जगह आया करते थे और उस समय इसे सुआ गुफा कहा जाता था।

यह गुफा कई संतों की तपस्या स्थली रही है जिनमें रोड़ीदास जी, फूलनाथ जी और फलाहारी बाबा का नाम मुख्य है।

कहते हैं कि संत रोड़ीदास जी के समय शिवरती (Shivrati) ठिकाने के राजकुमार फतेह सिंह इस जगह पर महाराज के पास आया करते थे।

एक दिन रोड़ीदास जी ने राजकुमार फतेह सिंह को आशीर्वाद दिया था कि वो भविष्य में मेवाड़ के महाराणा बनेंगे।

समय के साथ रोड़ीदास जी की बात सच हुई। मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा सज्जन सिंह ने राजकुमार फतेह सिंह को गोद लिया और वो बाद में मेवाड़ के महाराणा बने।

साल 1951 में इस जगह बृज बिहारी बन महाराज आए। इन्होंने साल 1951 से लेकर 1962 तक यहाँ पर तपस्या की। इतने समय तक मुख्य गुफा की छोटी गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग मौजूद था।

छोटी गुफा की चौड़ाई कम होने की वजह से इसमें जाकर शिवलिंग की आराधना करने में काफी परेशानी होने के बावजूद बृज बिहारी जी लगभग 10 सालों तक इसमें जाकर पूजा पाठ किया करते थे।

साल 1962 में किसी कारणवश इस शिवलिंग के खंडित हो जाने की वजह से मुख्य गुफा में पंचमुखी गंगाधर विग्रह स्थापित किया गया।

इस पंचमुखी विग्रह को स्थापित करने से पहले इस जगह पर खंडित स्वयंभू शिवलिंग को स्थापित किया गया। उसके बाद इसके ऊपर पंचमुखी गंगाधर विग्रह स्थापित किया गया।

साल 1951 में बृज बिहारी महाराज के आने से पहले इस गुफा में मात्र एक धूणी हुआ करती थी। धीरे-धीरे महाराज ने इस गुफा के साथ इस जगह का विकास करवाया।

1962 में पंचमुखी गंगाधर विग्रह की प्रतिष्ठा के बाद महाराज ने इस गुफा का नाम गुप्तेश्वर महादेव रखकर हर साल भाद्रपद पूर्णिमा को दो दिवसीय मेले का आयोजन शुरू करवाया।

हम ये कह सकते हैं कि आज गुप्तेश्वर महादेव में जो भी विकास कार्य और सुविधाएँ आप देख रहे हैं वो सब बृज बिहारी महाराज की देन है।

इनके प्रयासों से ही एक गुमनाम गुफा आज उदयपुर के अमरनाथ के रूप में जानी जाती है। कई लोग इसे मेवाड़ का अमरनाथ भी कहते हैं।

साल 2019 में 21 फरवरी के दिन बृज बिहारी महाराज के देहांत के बाद गुफा के मुख्य द्वार के सामने इनकी समाधि बनाई गई। 

गुप्तेश्वर महादेव गुफा के पास घूमने की जगह - Places to visit near Gupteshwar Mahadev Cave


अगर गुप्तेश्वर महादेव गुफा के पास घूमने की जगह के बारे में बात की जाए तो आप बाघदड़ा नेचर पार्क देख सकते हैं।

गुप्तेश्वर महादेव गुफा कैसे जाएँ? - How to reach Gupteshwar Mahadev Cave?


अब हम बात करते हैं कि गुप्तेश्वर महादेव गुफा तक कैसे जाएँ।

गुप्तेश्वर महादेव की गुफा उदयपुर -सलूम्बर रोड़ पर तितरड़ी और एकलिंगपुरा गाँव के बीच एक पहाड़ के ऊपर है। इस पहाड़ के पास में ही गीतांजलि यूनिवर्सिटी और हॉस्पिटल है।

उदयपुर रेलवे स्टेशन से गुप्तेश्वर महादेव गुफा की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है। यहाँ पर आप तितरड़ी और एकलिंगपुरा दोनों तरफ से आ सकते हो।

एकलिंगपुरा की तरफ से आने वाला रास्ता मुख्यतया गाँव के स्थानीय निवासियों द्वारा काम में लिया जाता है। लगभग 900 मीटर ट्रैकिंग वाला यह रास्ता खेड़ा देवी मंदिर से शुरू होता है।

आम लोगों के लिए गुप्तेश्वर महादेव गुफा का मुख्य रास्ता बिलिया, तितरड़ी की तरफ से ही है। गुफा तक आने के लिए मुख्य सड़क पर तोरण द्वार बना हुआ है। पार्किंग तक पक्की सड़क है।

गुप्तेश्वर महादेव गुफा की पार्किंग तक आप अपने वाहन से आ सकते हैं। पार्किंग से गुफा तक की लगभग 600 मीटर की चढ़ाई आपको पैदल ही पार करनी पड़ती है।

उदयपुर रेलवे स्टेशन से गुफा तक आने के लिए मुख्यतया तीन रास्ते हैं जिनमें एक टेकरी से सेक्टर 5 होते हुए दूसरा सविना से तितरड़ी होते हुए है।

तीसरा रास्ता पारस सर्कल से रेती सर्कल होते हुए सविना में हाड़ी रानी सर्कल क्रॉस करके सेक्टर 7 होते हुए है।

आखिर में आपको यही कहना है कि अगर आप घूमने के साथ धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को देखने में रुचि रखते हैं तो आपको इस जगह जरूर जाना चाहिए।

आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।

इस प्रकार की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।

गुप्तेश्वर महादेव मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Gupteshwar Mahadev Mandir



गुप्तेश्वर महादेव मंदिर का वीडियो - Video of Gupteshwar Mahadev Mandir



गुप्तेश्वर महादेव मंदिर की फोटो - Photos of Gupteshwar Mahadev Mandir


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य के लिए है। इस जानकारी को विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से लिया गया है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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