करणी माता के नेहड़ी जी मंदिर का इतिहास - History of Karni Mata Nehdi Ji Mandir, इसमें बीकानेर के देशनोक के पास करणी माता के नेहड़ी मंदिर की जानकारी है।
करणी माता का जन्म जोधपुर के सुवाप गाँव में विक्रम संवत 1444 में आश्विन शुक्ल सप्तमी के दिन एक चारण परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम मेहाजी और माता का नाम देवल बाई था।
इनके बचपन का नाम रिद्धिबाई था। कम उम्र में ही इनके चमत्कारों की वजह से इन्हें करणी यानी करामाती (चमत्कारी) मान लिया गया जिस वजह से ये करणी माता के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
करणी माता जब बड़ी हुई तब उनका विवाह साठीका गाँव के देपाजी के साथ हुआ। करणी माता ने अपने पति को अपना भगवती रूप दिखाकर वैवाहिक जीवन से दूरी बनाकर अपने पति का विवाह अपनी छोटी बहन गुलाब से करवा दिया।
कुछ समय बाद करणी माता साठीका से देशनोक के पास नेहड़ी जी में आकर रहने लग गई। उस समय यह स्थान पशुओं का चरागाह हुआ करता था।
यहाँ पर उन्होंने दही मथने के लिए खेजड़ी की सूखी लकड़ी को जमीन में रोपा और दही के छींटे देकर उसे हरा भरा कर दिया।
यह खेजड़ी का पेड़ आज भी मौजूद है जिसके नीचे करणी माता की प्रतिमा मौजूद है। माना जाता है कि इस पेड़ की छाल से कई रोग ठीक हो जाते हैं।
आपको बता दें कि दही बिलोने के लिए दो चीजें काम आती है, पहली जिससे दही बिलोया जाता है उसे झेरणा और दूसरी जिसे जमीन में रोपकर उसकी मदद से झेरणे को रस्सी से घुमाया जाता है उसे नेहड़ी कहते हैं।
करणी माता ने नेहड़ी के रूप में रोपी गई खेजड़ी की सूखी लकड़ी को हरा भरा पेड़ बना दिया। यह पेड़ धीरे-धीरे नेहड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया और अब यहाँ मंदिर बन जाने से इसे नेहड़ी धाम कहा जाने लगा है।
इस जगह पर एक गुफा भी मौजूद है जिसमें माता साधना किया करती थी। अब यह गुफा तहखाने जैसी लगती है जिसमें एक शिवलिंग मौजूद है।
लेखक (Writer)
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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